"रामायण केवल कहानी नहीं, बल्कि जीवन जीने की प्रेरणा है" उद्देश्य के साथ रामलीला मंचन

कंपोजिट विद्यालय धर्मसीपुर, शिक्षा क्षेत्र रानीपुर, जनपद मऊ

BY VISHWAJEET RAI

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कंपोजिट विद्यालय धर्मसीपुर में रामायण मंचन — आदर्शों और संस्कारों की अनूठी प्रस्तुति

धर्म, नीति, मर्यादा और आदर्श जीवन का प्रतीक श्रीरामचरितमानस केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है। इसी अमर गाथा को जीवंत रूप देने का प्रयास किया गया कंपोजिट विद्यालय धर्मसीपुर, रानीपुर, मऊ में, जहाँ विद्यालय परिवार द्वारा रामायण का भव्य मंचन आयोजित किया गया। इस अवसर पर बच्चों ने बालकाण्ड से लेकर रावण मरण काण्ड तक के सभी प्रसंगों को अत्यंत समर्पण और उत्साह के साथ प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम का शुभारंभ प्रधानाध्यापिका श्रीमती राधा यादव द्वारा दीप प्रज्वलन और ‘जय श्रीराम’ के उद्घोष से हुआ। पूरा विद्यालय प्रांगण भक्तिरस से सराबोर हो उठा। मंचन का निर्देशन सहायक अध्यापक श्री विश्वजीत राय द्वारा किया गया, जिन्होंने बच्चों को संवाद, अभिनय और भाव-प्रदर्शन का उत्कृष्ट प्रशिक्षण दिया। सीता स्वयंवर प्रसंग में श्री अनूप प्रजापति एवं श्री रमाकांत यादव ने अपनी भूमिका निभाकर दर्शकों की खूब सराहना पाई।

विशेष रूप से कक्षा 8 के छात्र ऋतुराज गुप्ता का अभिनय अत्यंत सराहनीय रहा। उन्होंने राजा दशरथ, परशुराम और हनुमान की भूमिकाएँ निभाईं और अपने संवाद, हावभाव तथा भावनात्मक अभिव्यक्ति से दर्शकों का मन मोह लिया। उनके अभिनय ने पूरे कार्यक्रम में ऊर्जा और जीवंतता भर दी।

रामायण के छह काण्डों से मिली जीवन प्रेरणा

मंचन के माध्यम से विद्यार्थियों ने न केवल अभिनय का कौशल दिखाया बल्कि प्रत्येक काण्ड से जीवन की महत्वपूर्ण सीख भी प्रस्तुत की—

  • बालकाण्ड में श्रीराम के जन्म, गुरु वशिष्ठ के आश्रम में शिक्षा ग्रहण और विश्वामित्र के साथ वनगमन के प्रसंग से बच्चों ने संस्कार, अनुशासन और विनम्रता का संदेश दिया।

  • अयोध्याकाण्ड में राम का वनवास और पितृभक्ति के भाव से कर्तव्यनिष्ठा और आज्ञापालन की प्रेरणा मिली।

  • अरण्यकाण्ड ने कठिन परिस्थितियों में धैर्य, संयम और धर्मपालन का आदर्श प्रस्तुत किया।

  • किष्किंधाकाण्ड ने मित्रता, सहयोग और एकता का महत्व बताया।

  • सुन्दरकाण्ड में हनुमान जी के साहस, भक्ति और समर्पण की भावना ने बच्चों के हृदय में विश्वास और शक्ति का संचार किया।

  • लंका काण्ड एवं उत्तर काण्ड में श्रीराम द्वारा रावण वध और राज्याभिषेक के माध्यम से सत्य, न्याय और धर्म की विजय का संदेश दिया गया।

सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक

इस रामलीला मंचन ने यह सिद्ध किया कि विद्यालय केवल ज्ञान का मंदिर ही नहीं, बल्कि संस्कारों और संस्कृति का संवाहक भी है। विद्यार्थियों के अभिनय से यह स्पष्ट झलकता है कि जब शिक्षा में संस्कृति का समावेश होता है, तो बच्चों का व्यक्तित्व बहुआयामी बनता है।

कार्यक्रम के अंत में प्रधानाध्यापिका श्रीमती राधा यादव ने सभी शिक्षकों और विद्यार्थियों को बधाई देते हुए कहा —

“रामायण केवल कहानी नहीं, बल्कि जीवन जीने की प्रेरणा है। हमें श्रीराम के आदर्शों को अपने आचरण में उतारना चाहिए।”

विद्यालय परिवार ने कार्यक्रम का समापन “जय श्रीराम” के गगनभेदी नारों के साथ किया। पूरे परिसर में भक्ति, आनंद और गर्व का वातावरण व्याप्त रहा।